Friday, December 31, 2010

नया साल मुबारक



आसमान ने सितारों भरी ओढ़ के चादर
ज़मीं का हाथ पकड़ के कहा ! चलो मेरी जान
अपनी औलाद जिसे दुनिया कहती है इंसान
उसकी खुशियों के वास्ते आओ दुआ मांगे

सारे संसार की खुशियाँ उन्हें देना मेरे मौला
उनके सपनो को ताबीर हो हासिल किसी भी हाल
हो उनकी दौलत,शौहरत और इज्ज़त में खूब इजाफा
उनकी हर ख्वाहिश को साकार बनाये नया साल

"दीपक" तेरी देहरी पे जलाते हैं ऐ ! जगतारक
औलांदे सब कुदरत की सबको नया साल मुबारक

दीपक शर्मा
सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा

Tuesday, September 28, 2010

आँख बंद करके भला तमघन कैसे चाट पायेंगे

आँख बंद करके भला तमघन कैसे छट पायेंगे
उठने के लिये जगना होगा , वरना जग से उठ जायेंगे

सिर्फ बातों से, कलम से और बे - सिला तर्कों - बहस से
बात तो हो जायेगी पर हासिल न कुछ कर पायेंगे

नुक्ताचीनी , मगज़मारी , माथापच्ची , बहसबाज़ी
जिस दिन करना छोड़ देंगे नये रास्ते खुल जायेंगे

ऐसी कोई मुश्किल नहीं , जिसका बशर पे तोड़ न हो
जब तोडना ही चाहेंगे तो कैसे मन जुड़ पायेंगे

"दीपक" कैसे कह दिया सच अब तेरा हाफिज़ खुदा
तू अँगुलियों की बात न कर हाथ तक उठ जायेंगे


( सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा )

उपरोक्त ग़ज़ल कवि दीपक शर्मा की अप्रकाशित रचना से ली गई है




Aankh band karke bhala tamghan kaise chat paayenge
Uthne ke liye jagna hoga , warna jag se uth jaayenge.

Sirf baaton se , kalam se, aur be-sila tark-o-bahas se

Baat to ho jaayegi par haasil na kuch kar paayenge.

Nuktachini , magazmari ,
mathapichchi, bahasbaazi
Jis din karna chod denge naye raaste khul jaayenge.

Easi koi mushkil nahi ,jiska bashar pe tod na ho

Jab todna hi chahenge to kaise man jud paayenge

"Deepak" kaise kah diya sach ab tera hafiz khuda
Tu anguliyon ki baat na kar haath tak uth jaayenge


( All right reserved @ Deepak Shrma )

This Gazal is taken from the unpublished creations of Deepak Sharma

Sunday, August 1, 2010

फ्रेंडशिप डे पर दीपक शर्मा कि ओर से आप सब के लिए ....

आप का साथ मुझे हौसला देता है
सादिक़ दोस्त सादिक़ सिला देता है

प्यार तेरा खुदाया करम है मुझ पे
ख्याल तेरा मुझे अक़्सर रुला देता है.

(सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा )

Wednesday, May 26, 2010

सेमल जैसी काया ...

सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।

दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा

कवि दीपक शर्मा

Monday, May 3, 2010

माफ़ कर दो आज देर हो गई आने में


माफ़ कर दो आज देर हो गई आने में
वक़्त लग जाता है अपनों को समझाने में।

किरण के संग संग ज़माना उठ जाता है
देखना पड़ता है मौका छुप के आने में

रूठ के ख़ुद को नहीं मुझको सजा देते हो
क्या मज़ा आता है यूं मुझको तड़पाने में

एक लम्हे में कोई भी बात बिगड़ जाती है
उम्र लग जाती किसी उलझन को सुलझाने में ।

तेरी ख़ुशबू से मेरे जिस्म "ओ"जान नशे में हैं
"दीपक" जाए भला फिर क्यों किसी मयखाने में ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा

कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.com

Maaf kardo aaj der ho gai aane me
Waqt lag jata hai apno ko samjaane me.
Kiran ke saath saath zamana uth jata hai
mauka dekhna padta hai chup ke aane me.
Rooth kar khud ko nahi mujhko saza dete ho
kiya maza aata hain mujhko yoon tadhpaane me.
Ek lamhe mein koi bhi baat bigadh jaati hain
Umr lag jaati hai kisi uljhan ko suljhane me .
Teri khushbo se mere zism "o"jaan nashe me hain
"Deepak"jaaye bhala fir kyon kisi maykhaane me

all rights reserved @ Deepak Sharma

http://www.kavideepaksharma.com